Freedom Fighter Birda Singh Lala's Bara Jahajpur Bhilwara Chapter - 1

स्वतंत्रता सेनानी बिरदा सिंह 

सूबेदार लाला का बाड़ा जहाजपुर भीलवाड़ा 


सम्माननीय विद्वान पाठको आपको बड़े ही हर्ष के साथ मेरा नमन कि पिछले कई वर्षों से मैं आपके साथ जुड़ा हुआ हूं।  हमारी टीम के साथ में मिलकर उनका आदिवासी ग्रंथ तैयार किया तथा आदिवासी ग्रंथ भाग 2 और आदिवासी ग्रंथ भाग 3  प्रकाशित करवा कर अब आपके बीच में हैं। संपूर्ण राजस्थान ही नहीं भारतवर्ष से हमारे द्वारा प्रकाशित अंको को बहुत ही तवज्जो दी गई तथा आदिवासी समाज के साथ-साथ सर्व समाज के लोगों ने भी इनको पढ़कर इस भारत देश के रोचक पूर्ण विलुप्त इतिहास की जानकारी को पढ़कर अपने आप पर गौरवान्वित महसूस किया तथा संपूर्ण टीम को धन्यवाद ज्ञापित किया। मैं और मेरे दल के सभी सदस्य सभी पाठकों  के बहुत बहुत आभारी हैं। अब आपके लिए हमारी टीम के माध्यम से आदिवासी ग्रंथ भाग 4 में प्रकाशित होने वाली रोचक पूर्ण जानकारी प्रतिदिन लेकर आ रहे हैं ।आप हमारे अंक को पढ़े बिना रह गए तो एक बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी से आप दूर हट गए ।इसलिए साथियों हमारा अंक ज्यों ही प्रकाशित होता है उसको आप स्वयं पढ़िए तथा दूसरों को पढ़ाइए। हमारा दल समरसता की भावना से इतिहास को प्रकाशित करता है तथा प्रत्येक व्यक्ति में अपने आपको समझता है तो आज हम उन रणबांकुरे का इतिहास लेकर आ रहे हैं जो इस भारत देश की आजादी में अपने प्राणों की बाजी लगाकर पांच- पांच पीढ़ियां  युद्धों में अपनी वीरता का प्रर्दशन करके बहुत से पुरस्कार प्राप्त किये  तथा आजादी के प्रथम विश्व युद्ध  से लेकर कारगिल युद्ध 1999 तक में अपना परचम लहरा कर आदिवासी मीणा समाज का नाम रोशन किया है। उस महान योद्धा के परिवार की वीरता पूर्ण   कथा हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।

स्वर्गीय बिरदा सिंह सूबेदार लाला का बाड़ा जहाजपुर भीलवाड़ा


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मत्स्य प्रदेश की बहादुर और वीर प्रसूता धरती खेराड़ जहां की मिट्टी में वीर सपूत पैदा होते हैं। जिनके रग-रग में मातृभूमि के लिए प्रेम और देश की आन बान शान के लिए अपनी कुर्बानी देने के लिए हमेशा तत्पर हाजिर रहे हैं ऐसे योद्धाओं की महान जन्मभूमि लाला का बाड़ा तहसील जहाजपुर जिला भीलवाड़ा कि वह भूमि जिसकी मिट्टी को आने वाले  अतिथि तिलक लगा कर नमन करते हैं। सन् 1883 में श्री भूराराम जी मीणा गोत्र मोटिस  लाला का बाड़ा तहसील जहाजपुर जिला भीलवाड़ा के घर माता श्रीमती लक्ष्मी देवी की कोख से बालक बिरदा का जन्म हुआ। बालक की परवरिश माता पिता ने बहुत ही अच्छी तरह से की। समय पर बालक बिरदा  को पिता भूराराम ने प्राथमिक शिक्षा से जोड़ा तथा बाल्यावस्था में ही बिरदा की शादी गंगाबाई के साथ संपन्न करावा दी। इसी दौरान बालक बिरदा  की रूचि देश सेवा के प्रति रहने लगी तथा वह अपने अन्य साथियों के साथ एक दिन सेना में जाने की सोची तथा खेराड क्षेत्र में उस समय देसी रियासतों के साथ-साथ  अंग्रेजी सरकार का बोलबाला था तथा इस क्षेत्र के वीर योद्धा मीणाओं को दबाने के लिए देसी रियासतों के सहयोग से अंग्रेजी सरकार ने एक रेजिमेंट का गठन कर रखा था जो भारतीय सेना 2/42nd देवली मीणा रेजीमेंट इंडियन इन्फेंट्री के नाम से जानी जाती थी।

देवली में राजपूताना  हिंदू और मुसलमान नाम से कंपनियां गठित थी उन्हीं में देवली रेजिमेंट में बालक बिरदा सिंह 17जनवरी सन् 1899को सेना में भर्ती हो जाते हैं तथा अपनी योग्यता से वह समय-समय पर पदोन्नति प्राप्त करते हुए

 20नवम्बर 1915 को इंडियन इन्फेंट्री देवली रेजिमेंट में सूबेदार पद पर नियुक्ति प्राप्त की।

श्री बिरदा सिंह को संतान सुख में श्री गंगा सिंह व श्रवण कुमार दो पुत्र हुए जिनकी भी सेना के प्रति रूचि रही ..........…................

अंक जारी रहेगा अपने नए विचारों एवं सुझावों के साथ हमसे जुड़ें रहें।

निवेदक।

लेखक एवं इतिहासकार

तारा चंद मीणा (चीता)

कंचनपुर सीकर

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