लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!
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कालीदास स्वामी स्वतंत्रता सेनानी :
कालिदास स्वामी का जीवन परिचय :
सीकर जिले की श्रीमाधोपुर तहसील के गांव जैतूसर ढाणी केवल दास वाली में श्री नानग राम सैनी के घर माता पार्वती देवी की कोख से एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी बालक का जन्म 31 जनवरी सन् 1931 को हुआ ।बालक का जन्म के समय बोलता नाम कालू रखा गया। कालू जन्म से ही चमकते हुए चेहरे के साथ अपनी बाल क्रीड़ा से अपने परिवार जनों को काफी रोमांचित करता। उचित समय पर दादाजी श्री गिरधारीलाल सैनी ने बालक कालू को प्राथमिक शिक्षा के लिए महरौली गांव के विद्यालय में दाखिला दिलाया। बालक कालू प्रतिभा का धनी शिक्षा के प्रति रुचि रखने लगा तथा समय की गति के साथ साथ किशोरावस्था में ही प्राइमरी शिक्षा महरौली से प्राप्त करते हुए रींगस के श्री रामानंद पाठशाला से मीडिल क्लास पास की तथा आजादी के आंदोलन में कालूराम अपने जीवन को आजादी के दीवानों के साथ जोड़ने का लक्ष्य रखा।
19वीं शताब्दी के दौरान भारत देश में स्वतंत्रता का आंदोलन
19वीं शताब्दी के दौरान भारत देश में स्वतंत्रता का आंदोलन जोरों पर था जिधर देखो उधर आजादी के दीवानों की रैलियां निकलती नजर आ रही थी । प्रत्येक वीर ,युवा के मन में एक ही ललक थी कि मेरा भारत देश अंग्रेजों की दासता से कब मुक्त हो और मैं एक स्वतंत्र जिंदगी जी सकूं। उस दौरान अंग्रेजी शासन के साथ-साथ भारत देश में जागीरदारों की बहुतायत थी उन्हीं में से मत्स्य प्रदेश जिसको आज राजस्थान के नाम से जाना जाता है ।यहां जागीरदारों और ठिकानेदारों का जुलम जनता पर ढ़ाहया जाता था जिसको सहन करना आम नागरिक के बस की बात नहीं थी। उनके जुल्मों से तंग आकर लोग स्वतंत्रता के आंदोलन में तन मन और धन के साथ शामिल हो रहे थे।
स्वतंत्रता आंदोलन 1942
स्वतंत्रता आंदोलन 1942 के समय मत्स्य प्रदेश में भी जगह जगह आंदोलनकारियों के साथ बालक बालिकाएं युवावस्था के युवक इन जनसभाओं में भाग लेते थे उन सभी को देखकर बालक कालीदास के मन में भी देश के प्रति आजादी की अलख में शामिल होने की मनसा जागी और क्षेत्रीय आजादी के दीवाने पंडित बंशीधर शर्मा, श्री राम भजन स्वामी, भक्ता राम जी मीणा सीकर, अर्जुन लाल जी मीणा, हरसहाय जी मीणा नयाबास, लक्ष्मीनारायण मीणा झरवाल जयपुर आदि की जनसभाओं में भाग लेने लगे तथा उनके जोशीले उद्बोधन सुनकर बालक कालूराम का मन भी आजादी के इस स्वतंत्रता आंदोलन में काम करने का मन बना लिया तथा उन्हीं दिनों में सीकर जिले में भी प्रजामंडल में सदस्य अभियान ने जोर पकड़ रखा था। जिसमें इस ढूंढाड़ क्षेत्र के किसान ,मजदूर, युवा, बालक, बालिकाएं भी अपनी भूमिका निभाने के लिए सदस्यता ग्रहण कर रहे थे। उन्हीं सभी में बालक कालूराम ने भी सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपना योगदान देना शुरू किया तथा अग्रणी पंक्ति के योद्धाओं के साथ आजादी के नारे लगाना, आयोजित बैठकों, सेमीनारों में व्यवस्था कराना आदि कार्य करने लगे। इसी दौरान बालक के दादाजी श्री गिरधारी लाल स्वामी ने बालक कालूराम को सन् 1944 में दादू पंथ ग्रहण कराकर कालूराम से कालीदास बना दिया तथा समाज सेवा के लिए आजादी की अलख जगाने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों को सहयोग करने के लिए आंदोलन कार्यों के साथ भेजने लग गए।
भारत छोड़ो आंदोलन
भारत छोड़ो आंदोलन में विरोध प्रदर्शन जुलूस निकालकर अंग्रेजी शासन एवं जागीरदारों ठिकानेदारों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ बालक कालीदास भी इस आंदोलन में शामिल हो गए उस दौरान भीड़ के द्वारा शहर में तोड़फोड़ आगजनी अंग्रेजो के खिलाफ नारेबाजी कर विरोध प्रदर्शन करना तथा प्रदर्शन के दौरान पत्थरबाजी होना इन सभी कार्यक्रमों में कालीदास भी देश के प्रति सच्ची भक्ति रखते हुए आंदोलन कार्यों के साथ थे। अंग्रेजी शासन के नुंमादे जागीरदार अपनी पुलिस बल से जनता को दबाना चाह रहे थे। उसी दौरान पत्थरबाजी होने से बालक कालीदास के आंख पर चोट आ गई जिससे खून बहने लगा पर बालक के ऊपर आजादी का जोश और भी परवान चढ़ गया तथा जुलूस में महत्ती भूमिका निभाते हुए आगे बढ़ते गए। विरोध प्रदर्शन जुलूस आदि में शामिल होने के कारण कालिदास जी को सजा के तौर पर क्षेत्रीय जागीरदारों द्वारा 11 चाबुक कोड़े की सजा दी गई तथा वहां से रिहा होने के उपरांत भूमिगत होकर जागीरदारों एवं अंग्रेजी शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते रहे तथा किसानों मजदूरों के संगठन को मजबूत करने के लिए अपना योगदान देते रहे लगभग 8 महीने भूमिगत रहने के उपरांत सीकर के जागीरदारों का दबाव होने के कारण कालीदासजी को 19 मार्च सन् 1946 को तत्कालीन सीकर ठिकानेदार द्वारा उनके साथी कालू राम मीणा रींगस, किशोरी लाल नाई व अन्य क्रान्तिकारियों के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया एवं जेल में कठोर यातनाएं दी गई जिसमें अनाज पिसाने के साथ साथ कई दिनों तक भूखे प्यासे रखकर यातनाएं देना तथा माफी मांगने पर मजबूर करना परंतु वह स्वतंत्रता सेनानी थे कोई भाड़े के टट्टू नहीं थे जो माफी मांग ले! उनकी बहादुरी को देखते हुए टस से मस नहीं होने के कारण तत्कालीन सीकर ठिकानेदार द्वारा इनको बालक समझते हुए 13 अप्रैल सन् 1946 को जेल से रिहा कर दिया गया ।
आंदोलन में नाम
इनका नाम आंदोलन में आने के कारण अंग्रेजी शासन के नुमाइंदे यहां के जागीरदारों ने इनके परिवार को गांव से निष्कासित कर दिया गया और घर बार जमीन को निलाम कर दिया। जिससे इनके पिता नानग राम ने गांव से रींगस आकर अपना आशियाना बनाया परंतु बालक कालिदास इतनी पीड़ा सहन करने के उपरांत भी आजादी के आंदोलन में डटे रहें आजादी के दीवाने स्वतंत्रता आंदोलन में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेते हुए अपने आपको आंदोलन में झोंक दिया 24 जून सन् 1946 को महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा में दिल्ली में उपस्थित हुए तथा वहां इनके कार्य के प्रति जब गांधीजी को पता चला तो उन्होंने इन बहादुर नव युवकों की सराहना करते हुए धन्यवाद दिया।
15 अगस्त सन् 1947
आखिर 15 अगस्त सन् 1947 को भारत देश अंग्रेजों की लंबी गुलामी से आजाद हो गया तथा चारों और खुशी का माहौल छा गया। देश की आजादी का जुलूस कस्बा रींगस में स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों एवं ग्राम वासियों द्वारा बड़े जोर शोर से निकाला गया जिसमें स्वतंत्रता सेनानी श्री रामस्वरूप हिंदका के नेतृत्व में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया।
शिक्षा
कालीदासजी अपनी शिक्षा को आगे जारी रखते हुए संस्कृत विषय से मध्यमा सन् 1948 में पास करते हुए समाज सेवा में जुट गए और संस्कृत शिक्षा में योग्यता हासिल करने पर ग्रामीण जनों की मांग पर ग्राम जैतूसर में सन 1958 में ज्ञानोदय विद्यापीठ नाम से पांचवी कक्षा तक का विद्यालय इन्होंने शुरू किया तथा गांव के बालकों को उत्तम शिक्षा देते हुए आगे की ओर बढ़ाते हुए सेवा का जज्बा रखा।
राजनीतिक
ग्रामीण जनों ने सन् 1960 में कालीदास जी को ग्राम पंचायत जैतूसर का सरपंच मनोनीत किया। आपकी राजनीति में अच्छी पकड़ होने के कारण विविध कार्य आपने संपादित किए एवं विभिन्न राजनीतिक पदों पर आपने कार्य किया सन् 1954 से सन् 1963 तक आप सीकर के केंद्रीय सहकारी बैंक के संचालक के पद पर भी कार्य किया तथा लगातार 28 वर्ष तक ग्राम जैतूसर के सरपंच पद पर बने रहे भारत सरकार ने आपकी योग्यता और समाज सेवा को देखते हुए आपको स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया तथा समाज सेवा में अधिक रुचि रखने के कारण इन्होंने सन् 1994 को अपने निजी विद्यालय की 5 बीघा भूमि भवन सहित ग्राम पंचायत जैतूसर को सुपुर्द कर दी। कालिदास जी सरकार के साथ-साथ समाज सेवा में अग्रणी भूमिका में रहे तथा आपने माली समाज के कई संगठनों में कार्य किया
साहित्य क्षेत्र
साहित्य क्षेत्र में आपने शोषण नामक एकांकी नाटक, बालको में चारित्रिक शिक्षा हेतु पुस्तक बालबोध ,श्री दादू चालीसा, श्री दादू पंचधाम महात्मय,व दादू नाम शब्दावली आदि साहित्यिक कृतियां संपादित की।
सम्मान और पुरस्कार
आपकी दान शीलता सामाजिक सेवाएं विभिन्न उपलब्धियों को देखते हुए राजस्थान सरकार व केंद्र सरकार ने आपको विभिन्न सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया तथा देश के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने आपको 9 अगस्त सन् 2012 को सॉल्व एवं पारितोषिक सम्मान देकर अभिभूत किया।
समाज में अग्रणी भूमिका
आपकी कर्तव्य परायणता इतनी ताकतवर बनी कि आज भी आप शतायु की ओर बढ़ते हुए भी समाज में अग्रणी भूमिका में रहकर कार्य कर रहे हैं। आप हमेशा एक ही वाक्य दोहराते हैं कि समाज में समरसता की भावना से कार्य कीजिएगा वही तरक्की का मार्ग है। लेखक एवं इतिहासकार सन् 2005 से लगातार स्वतंत्रता सेनानी कालिदास स्वामी के साथ रहकर समाज सेवा के रूप में जल बचाओ, पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ समिति, राजस्थानी भाषा को भारतीय संविधान में आठवीं अनुसूची में शामिल करवाना, श्री विजयराम दास सेवा ट्रस्ट के माध्यम से जन उपयोगी कार्य करना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ भारत सरकार के द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय कार्यक्रमों में महत्ती भूमिका में रहकर इनके सानिध्य में कार्य करना व इनके जीवन के अनमोल सुझावों से एक रत्न की प्राप्ति करते हुए आज दिनांक तक लेखक एवं इतिहासकार तारा चंद मीणा इनके साथ कदम से कदम मिलाते हुए कार्य कर रहे हैं
संदर्भ साक्षात्कार
स्वतंत्रता सेनानी कालीदास स्वामी ( व्यक्ति गत )
लेखक एवं इतिहासकार तारा चंद मीणा चीता प्रधानाध्यापक कंचनपुर श्रीमाधोपुर सीकर
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