LOK Devta : Saint Shri MalDev Ji, Magatji, Malkanwarji Maharaj : Cheptar - 2

लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!

 

एक ऐसी दुनिया में कदम रखें जहां शब्द जीवंत होंविचार फले-फूले और कहानियां सामने आएं। यह एक ऐसी जगह है जहां जुनून साझा किया जाता हैज्ञान का आदान-प्रदान किया जाता है और कनेक्शन बनाए जाते हैं। चाहे आप एक अनुभवी पाठक हों या जिज्ञासु घुमक्कड़यह ब्लॉग आपकी कल्पना को प्रेरित करनेसूचित करने और प्रज्वलित करने के लिए है। 

विचार के क्षेत्र के माध्यम से एक यात्रा पर मेरे साथ जुड़ेंक्योंकि हम यात्रा और रोमांच से लेकर प्रौद्योगिकी और नवाचार तकसाहित्य और कला से लेकर कल्याण और आत्म-खोज तक विविध विषयों की खोज करते हैं। यहांआपको देखभाल के साथ बुने गए शब्दों का एक टेपेस्ट्री मिलेगाजो अंतर्दृष्टिदृष्टिकोण और नए विचारों की पेशकश करेगा जो आपके जीवन को समृद्ध करेगा। 

एक भावुक ब्लॉगर के रूप मेंमैं कहानी कहने की शक्ति में विश्वास करता हूँ। प्रत्येक पोस्ट आपको नई दुनिया में ले जाने के लिएचिंतन को उत्तेजित करने के लिएऔर सार्थक बातचीत को चिंगारी देने के लिए सावधानी से तैयार की गई है। साथ मिलकरहम एक गहरे अनुभव की शुरुआत करेंगेजहां आपके विचार और मत मायने रखते हैं। यह ब्लॉग आकर्षक चर्चाओं और समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के एक जीवंत समुदाय के निर्माण के लिए एक मंच है जो ज्ञान की प्यास और लिखित शब्द के लिए प्यार साझा करते हैं। 

अपने शब्दों के माध्यम सेमेरा उद्देश्य आपको प्रेरित करना और सशक्त बनानाआपकी धारणाओं को चुनौती देना और आपको जीवन की संभावनाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। चाहे आप व्यावहारिक सलाहएक क्षणिक पलायनया बस प्रेरणा की खुराक की तलाश कर रहे होंयह ब्लॉग आपका अभयारण्य हैआपके ज्ञान और रचनात्मकता का नखलिस्तान है। 

तोअपने पसंदीदा पेय का एक कप लेंएक आरामदायक नुक्कड़ पर बैठेंऔर उन अजूबों में गोता लगाएँ जो हमारा इंतजार कर रहे हैं। साथ मेंहम अन्वेषणविकास और अंतहीन जिज्ञासा की अविस्मरणीय यात्रा शुरू करेंगे। एक ऐसी दुनिया में आपका स्वागत है जहां विचार खिलते हैं और सपने उड़ान भरते हैं। लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!


अंक - 842

महान् संत श्री माल देव जी(मागटजी,मालकंवरजी) महाराज

भाग - 1 से आगे......

        यहां एक बालिका फूलों की टोकरी में रखी हुई थी जिसके हाथ पांवों में छः छः अंगुलिया थी। माता पिता ने इस तरह की उंगलियां देखकर उसको अपशकुनी मानते हुए जन्म के समय ही उसको जंगल में छोड़ दिया था, यहां बणजारी गांव के कामगारों ने जब  फूलों की  टोकरी में नन्ही सी कन्या को रोते हुए देखा तो काफी आश्चर्यचकित रह गए और उसको वहां से उठाकर अपने पास रखा परन्तु उन्होंने   सोचा कि इसका हम क्या करेंगे ऐसा सोच रहे थे क्यों 'न' सूर्य देव की कृपा से  उधर  से गुजर रहे बंजारे को उन्होंने देखा और  इस घटना के विषय में अवगत हुआ  तो बंजारे ने उनसे कहा कि मेरे कोई संतान नहीं है यदि आप इस कन्या को मुझे दे, दो तो मैं इसको पुत्री रूप में स्वीकार करते हुए इसका पालन पोषण करूंगा आपकी अति कृपा होगी। यह कन्या मुझे दें दो। इस पर रोही क्षेत्र में काम करने वाले लोगों ने बालिका को बंजारे को सौंपते हुए उसके उज्जवल भविष्य की कामना की, बंजारे ने फूलों की टोकरी से प्राप्त कन्या का नाम फूलकंवर रखा तथा कन्या को शुभ मानते हुए बंजारे ने वहीं पर अपना आशियाना बनाकर व्यापार का केंद्र बनाया तथा बालिका का लालन पालन बहुत ही अच्छे तरीके से किया। जिससे कन्या जल्दी ही योवनावस्था पार कर गई। बंजारा के घर में बालिका के आने से व्यापार पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा उसके व्यापार को भी तरक्की मिली क्योंकि वह एक बेसहारा लड़की का सहारा बने थे तो प्रकृति ने उसको भी एक उपहार स्वरूप उसके व्यापार में तरक्की दी। बणजारे ने उसी क्षेत्र में रहते हुए एक कुएं का निर्माण कराया जो अजमेर के टाटगढ़ के पास है, जो शुद्ध जल के साथ साथ  बहुत गहराई वाला था  जिसका पैंदा आज भी दिखाई नहीं देता है। 

        एक समय बंजारे की बालद पर दहाड़ा पड़ गया। जिससे  बंजारा अपने बालद को बचाने के चक्कर में वहां से अचानक निकल पड़े और उस बालिका को वहीं छोड़कर उस स्थान से आगे बढ़ गया। जब  बालिका की नींद खुली तो उसने देखा कि उसका लालन - पालन करने वाला बंजारा यहां नहीं है तो वह एक पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़कर उसको देखने लगी परंतु उसको बंजारे की बालद कहीं भी दिखाई नहीं दी तो हताश होकर वहीं एक पेड़ की छाया में बैठ गई वहां प्रकृति की कृपा से उसको एक पेड़ के नीचे अग्नि तपस्या करते हुए एक योगी दिखाई दिए  बालिका फूलकंवर उस संत के पास जाकर बैठ गई तथा हताश होकर रोने लग गई  परन्तु संत अपनी भक्ति में लीन थे उसको सूर्य देव के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ।फूलकंवर ने अपना आशियाना वहीं बनाया और संत के आसपास की जगह को साफ सुथरी रखने लगी। बालिका फूलकंवर  तपस्वी संत के आसपास ही रहने लगी। तपस्वी संत रोहितसा अपनी भक्ति में इतने विलीन थे कि उनको अपने शरीर की भी सुध बुध नहीं रही उसके शरीर पर   मिट्टी की गर्द चढ़ गई  जिससे उनका बदन सुनहरे रंग का होने से चमकने लग गया। 

        एक दिन महायोगी ,कर्म योगी अग्नि तपस्या करने वाले संत की जब आंखें खुली तो उन्होंने अपने सामने सुंदर कन्या को बैठे देखकर बोला आप कौन हो और यहां कैसे पहुंची तब बाई फूल कंवर ने कहा मैं आपको कैसे बताऊं मैं कौन हूं। क्या हूं तथा मैं इस जंगल में कैसे आई तथा इस जंगल में क्यों भटक रही हूं काफी सोच विचार कर बालिका ने कहा कि मैं एक दुखियारी कन्या हूं। आपकी शरण में आई हूं  आप ही मेरा उद्धार करें योगीराज? संत रोहितसा ने उस लड़की की बात सुनी तथा उसको आशीर्वाद देते हुए कहा तुम्हें संतान सुख की प्राप्ति होवे बालिका ने यह सुनते ही बड़ा अचंभा किया परंतु संत का वरदान था अब क्या करें संत के आशीर्वाद से बालिका को चिंता सताने लगी फिर भी प्रकृति का आशिर्वाद मानते हुए इसे स्वीकार किया और रोही पहाड़ की तलहटी में बसे बामण हेड़ा गांव में आ गई तथा किसी राहगीर की सहायता से  गांव के मुखिया के घर में फूलकंवर को शरण मिली। जब इस युवती के गर्भ में  संत रोहीतसा के आशीर्वाद से गर्भ पल रहा था  उसका जीवन यापन हो रहा था यहीं पर उसके गर्भ से दो बालकों का जन्म हुआ  जिनका लालन पालन  बामण हेड़ा के मुखिया के यहां हुआ। जिनका नाम हरिया  और सरिया रखा गया इस पर हरिया व सरिया पंवार वंश में अपने वंश को आगे बढ़ाया :-

  1. हरिया भालिया  2. सरिया

16. प्रथम पुत्र हरिया की वंशावली

17. रेणसी

18.मडासी

19.कोथशल

20.कातेराव

21. विपत  बड़का

22. बालर ( 24 पुत्र हुए )

23. खत्रियाम         

  1.  देवा           
  2.  हामा (आमा)
  3.  सातूजी

24. सातुजी 

  1. नामट जी
  2. अरनाल ( अणदराय )
  3. ददेपाल ( नूत )
  4. महपाल ( नूत )
  5. मालाजी ( देवपुरूष )
  6. ईंदा बाई ( कुण्डा बाई )

मालाजी महाराज का जीवन परिचय इस तरह रहा।

प्रस्तुतकर्ता:-

लेखक एवं इतिहासकार तारा चंद मीणा (चीता) कंचनपुर सीकर 

साथियों इससे भी अधिक जानकारी आपके पास हो तो हम तक पहुंचाने का कष्ट करें। आप सभी विद्वानों को प्रणाम.........

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