Freedom Fighter Birda Singh Lala's Bara Jahajpur Chapter - 3

 अंक 851 


स्वतंत्रता सेनानी बिरदा सिंह लाला का बाड़ा जहाजपुर


श्री फूमसिंह सन् 1951 से सन् 1988 तक मीणा रेजिमेंट देवली की ओर से भारतीय सेना में देश की आजादी के उपरांत अपनी सेवाएं दी तथा भारत और चीन के बीच में लड़े गए सन् 1962 और 1965 के युद्ध में अपनी वीरता का कौशल दिखाया तथा कई अवार्ड प्राप्त किए। इनके सेवा के दौरान ही सन् 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। जिसमें इन्होंने बढ़-चढ़कर अपना सैनिक कौशल दिखाया जिसमें हमारे देश ने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की। 


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परिवार का लगातार सेना के प्रति रुख होने के कारण फूम सिंह के दो लड़के श्री लक्ष्मण सिंह ने सन् 1982 में भर्ती होकर सन् 1999 तक भारतीय सेना में रहे तथा ऑपरेशन पवन श्रीलंका जो सन् 1989 से चला आ रहा था ।इस ऑपरेशन पवन में आपने अपनी सेवाएं भारतीय सेना की ओर से प्रदान की। छोटे भाई रामवतार भी भारतीय सेना में भर्ती होकर देश के प्रति सेवा करने का जज्बा जगा। श्री रामवतार ने सन् 1999 में भारत पाकिस्तान के बीच में लड़ा गया कारगिल युद्ध की लड़ाई में भाग लिया और भारत की जीत में भागीदार बने। इसी तरह सेना की इनकी ललक आगे से आगे बढ़ती गई और श्री लक्ष्मण सिंह जी के पुत्र सवाई सिंह और शिवराज भी सेना में शामिल हुए जो अनवरत  सेना की सेवा दे रहे हैं तथा श्री रामवतार जी के पुत्र राहुल मीणा भी अभी भारतीय सेना में  अपनी ड्यूटी देकर परिवार की परंपरा को बराबर बनाए हुए हैं।

मीणा रेजिमेंट देवली के सानिध्य में खेराड क्षेत्र के मीणा बहादुरी के प्रतीक माने गए हैं तथा अपनी योग्यता का परचम भारत की सेनाओं में फहराया है इस तरह एक ही परिवार की 6 पीढ़ियां देश सेवा के लिए अपने आप को कुर्बान किया है तथा यहां की मातृत्व शक्ति भी अपने नौनिहालों को सेना में भेज कर अपने आप पर गर्व करते हैं कि मेरा बेटा सेना में जाकर अपने देश का और गांव का नाम रोशन करेगा। पूर्व में प्राप्त इस परिवार के पास ब्रिटिश सरकार से लेकर अब तक के इन बहादुरों ने बहुत से मेडल प्राप्त किए जो आज भी सूबेदार बिरदा सिंह मीणा की याद को ताजा करते हैं जिनमें प्रमुख रूप से हैं।

  • द ग्रेट वार मेडल 1914
  • दक्षिणी अफ्रीका स्टार 1939
  • रक्षा मेडल सन 1965
  • समर सेवा मैडल 1971
  • पूर्वी पश्चिमी स्टार मेडल 
  • विशेष सेवा मेडल
  • श्रीलंका पवन मेडल 

इस तरह के दर्जनों मेडल इनके परिवारजनों के पास आज भी सुरक्षित रखे हुए हैं।

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