LOK Devta : Saint Shri MalDev Ji, Magatji, Malkanwarji Maharaj : Cheptar - 3

लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!

 

एक ऐसी दुनिया में कदम रखें जहां शब्द जीवंत होंविचार फले-फूले और कहानियां सामने आएं। यह एक ऐसी जगह है जहां जुनून साझा किया जाता हैज्ञान का आदान-प्रदान किया जाता है और कनेक्शन बनाए जाते हैं। चाहे आप एक अनुभवी पाठक हों या जिज्ञासु घुमक्कड़यह ब्लॉग आपकी कल्पना को प्रेरित करनेसूचित करने और प्रज्वलित करने के लिए है। 

विचार के क्षेत्र के माध्यम से एक यात्रा पर मेरे साथ जुड़ेंक्योंकि हम यात्रा और रोमांच से लेकर प्रौद्योगिकी और नवाचार तकसाहित्य और कला से लेकर कल्याण और आत्म-खोज तक विविध विषयों की खोज करते हैं। यहांआपको देखभाल के साथ बुने गए शब्दों का एक टेपेस्ट्री मिलेगाजो अंतर्दृष्टिदृष्टिकोण और नए विचारों की पेशकश करेगा जो आपके जीवन को समृद्ध करेगा। 

एक भावुक ब्लॉगर के रूप मेंमैं कहानी कहने की शक्ति में विश्वास करता हूँ। प्रत्येक पोस्ट आपको नई दुनिया में ले जाने के लिएचिंतन को उत्तेजित करने के लिएऔर सार्थक बातचीत को चिंगारी देने के लिए सावधानी से तैयार की गई है। साथ मिलकरहम एक गहरे अनुभव की शुरुआत करेंगेजहां आपके विचार और मत मायने रखते हैं। यह ब्लॉग आकर्षक चर्चाओं और समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के एक जीवंत समुदाय के निर्माण के लिए एक मंच है जो ज्ञान की प्यास और लिखित शब्द के लिए प्यार साझा करते हैं। 

अपने शब्दों के माध्यम सेमेरा उद्देश्य आपको प्रेरित करना और सशक्त बनानाआपकी धारणाओं को चुनौती देना और आपको जीवन की संभावनाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। चाहे आप व्यावहारिक सलाहएक क्षणिक पलायनया बस प्रेरणा की खुराक की तलाश कर रहे होंयह ब्लॉग आपका अभयारण्य हैआपके ज्ञान और रचनात्मकता का नखलिस्तान है। 

तोअपने पसंदीदा पेय का एक कप लेंएक आरामदायक नुक्कड़ पर बैठेंऔर उन अजूबों में गोता लगाएँ जो हमारा इंतजार कर रहे हैं। साथ मेंहम अन्वेषणविकास और अंतहीन जिज्ञासा की अविस्मरणीय यात्रा शुरू करेंगे। एक ऐसी दुनिया में आपका स्वागत है जहां विचार खिलते हैं और सपने उड़ान भरते हैं। लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!


अंक 843

महान् संत श्री माल देव जी ( मागटजी, मालकंवरजी ) महाराज 

भाग - 2 से आगे स्वागत है आप सभी का भाग - 3 में :-

सातूजी का जन्म हरिया के वंश में 23 वीं पीढी में खत्रियाम हुए जिनकी वंश वृद्धि इस तरह रही : -

23 खत्रियाम         
1.देवा  
1.तेजा 
2.लाला
3.माना(इसका वंश देवतला, पालड़ी,तिलोरा, पुष्कर और नसरीबाद अजमेर में अपना विस्तार किया)         
2.हामा (आमा) के दो पुत्रियां हुई
1.धर्मा,2.माना
और खत्रियाम के तीसरी संतान सातूजी हुए 
24.सातूजी का जन्म लगभग सन् 880 में हुआ जन्म से ही बालक अपने पूर्वज श्री रोहितसा पंवार के कदमों पर चलने लगा और प्रकृति सूर्य देव की पूजा अर्चना करते हुए मानव के कल्याण की उनमें भावना पनपने लगी तथा जीवो के प्रति दया, प्रेम उनके मन में रहने लगा। उनके ऊपर उनकी माता जी का आशीर्वाद हमेशा बना रहा जब वे अपने मवेशियों को चराने के लिए जंगल में जाते थे तब एक समय उनके पास एक भालू का बच्चा आकर बैठ गया जो बहुत ही सुंदर था सातूजी ने उस बच्चे को  हमेशा अपने साथ रखने लगे। जब सातूजी बड़े हुए तो उचित समय पर  उनके पिताजी ने उनकी शादी जगमलदे नामक संस्कारवान लड़की के साथ सम्पन्न कराई  जो धर्मपरायणता से  सातूजी जी का साथ निभाने लगी।
        एक समय की बात है अजमेर मेरवाड़ा (मगरा)में बहुत ही भयंकर अकाल पड़ा, बरसात नहीं हो रही थी, सातूजी के मवेशी चारे और पानी के अभाव में काफी परेशान होने लगे जिससे सातूजी को बड़ा दुख महसूस होने लगा लेकिन कर भी क्या सकते थे। एक दिन मवेशियों को चराकर सांयकाल अपने घर पहुंचते हैं और चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो जाते हैं।जब उनकी धर्मपत्नी जगमलदे को पता लगता है कि मेरे पति देव अपने काम धंधे से लौटकर घर आ गए हैं तथा थके हारे अपने शयनकक्ष में आराम कर रहे हैं तो वह उनके लिए भोजन लेकर आती है और उनको भोजन करने के लिए कहती है परंतु सातूजी  भोजन को एक तरफ रख कर अपने मवेशियों के विषय में सोचने लग जाते हैं और मवेशियों की चिंता  में उन्होंने रात्रि को खाना भी नहीं खाया कि मैं भोजन कैसे करूं मेरे जानवर तो भूखें हैं उनकी पूर्ति   कैसे हो! परंतु ईश्वरीय शक्ति से प्रकृति की उपासना करने से उनके खेत पर भरपूर मात्रा में पानी हो गया इस बात का जिक्र आसपास के लोगों तक चला तो अजमेर मेरवाड़ा के राजवंश तक भी यह सूचना पहुंचीं कि सातूजी महाराज अपने मवेशियों को पानी और हरा चारा भरपूर मात्रा में दे रहे हैं। यह खबर अजमेर के राजा बीसलदेव तक पहुंची जो कि उनके क्षेत्र में आना सागर झील अकाल के अभाव में  सूख चुकी थी जीव जानवर पानी के प्यासे फिर रहे थे मानव के लिए अनाज  की  कमी खल रही थी। 
        जब बीसलदेव जी को सातुजी के विषय में इस बात का पता चला तब उन्होंने एक अपने दरबारी को सातू खेड़ा सातु जी के पास में भेजा और कहा कि आप अजमेर राज दरबार में उपस्थित होवें सातूजी वीर योद्धा थे कभी किसी के अधिनता स्वीकार करने वाले नहीं थे जब उनको राज दरबार का निमंत्रण मिला तो काफी आश्चर्य में पड़ गए कि मैं वहां क्यों जाऊं और इस बात से काफी परेशान होने लगे तब जगमलदे को उनके विषय में पता चला तो वह भी काफी चिंतित हुई कि सातूजी को अजमेर के राजा ने आमंत्रित किया है और अकाल की समस्या से दूर करने के लिए कह रहे हैं तथा सातूजी अजमेर जा कर वर्षा कैसे करा सकेंगे दोनों आपस में चिंता कर रहे थे तब रात्रि के समय सातूजी को स्वपन के माध्यम से उनकी देवी शक्ति प्रकृति माता ने आश्वासन दिलाया कि आप अजमेर राजा के दरबार में उपस्थित होवें। प्रकृति कृपा से आपके जाने पर वहां बरसात हो जाएगी। सातूजी स्वपन के माध्यम से प्रकृति की पूजा अर्चना करते हुए राजा बीसलदेव के दरबार में उपस्थित हो जाते हैं तथा राज दरबार में उपस्थित होने के बाद कहते हैं कि आपके राज्य में अच्छी बरसात हो जाएगी।
        जनश्रुतियों के माध्यम से और कई पुस्तकों के अध्ययन से पाया जाता है कि सातुजी महाराज के पहुंचने के दूसरे दिन ही अजमेर परगने के ऊपर प्रकृति की असीम कृपा हुई और बादल गर्जना शुरू हो गए तथा देखते-देखते बरसात आने शुरू हो गई तथा भरपूर मात्रा में आना सागर झील पानी से भर गई ।संपूर्ण राज्य क्षेत्र वर्षा से तर हो गया चारों तरफ शांति महसूस की जाने लगी परंतु राजा बीसलदेव को काफी चिंता हुई कि मैंने एक महान संत को जबरदस्ती मेरे राज्य में बुलाया है यह काफी नाराज हो गए हैं। मुझे किसी प्रकार का श्राप न दें दे। तब उन्होंने अपनी सात रानियों में से सबसे छोटी रानी जो पंवार वंश से थी उनको सातूजी महाराज के पास भेजा तथा आग्रह किया कि हमारे से बहुत बड़ी भूल हो गई है आप महल में चलो रानी सातूती जी के पास निवेदन करते हुए बोली परंतु सातूजी जी संत प्रवृत्ति के व्यक्ति थे ।उन्होंने राजा को माफ करते हुए कहा कि आपके राज्य में जितनी अढ़ाई दिन की  कमाई होती है उसमें एक महल बनाएं क्योंकि मैं जब भी यहां आऊं तो श्रावण मास में अजमेर में निवास कर सकूं         राजा ने सातूजी की बात को स्वीकार करते हुए अजमेर में अपनी ढाई दिन की कमाई में एक महल बनवाया जिसे आज भी ढ़ाई दिन के झोपड़े के नाम से जाना जाता है ।कालांतर में  इस स्थान पर एक संस्कृत विद्यालय था जिसे मुगलों के द्वारा आक्रमण से नष्ट कर दिया परंतु उसके अवशेष आज भी विद्यमान है। सातूजी के इस कार्य पर राजा बीसलदेव ने उनको अपने राज्य में से कुछ देने की मांग करने के लिए कहा परंतु सातूजी ने मना कर दिया तथा अपने क्षेत्र में लगने वाले हासिल (लगान)के लिए माफ करने को कहा जिस पर विशलदेव राजा ने उनके क्षेत्र को लगान मुक्त कर दिया। सातूजी की लोकप्रियता को बढ़ती देख कर राज्य के पुरोहित उनसे चिढ़ने लगे तथा अपने रास्ते से उनको हटाने  की योजना बनाने लगे। समय काल के दौरान उनके संतान रूप में पांच पुत्रों सहित एक पुत्री का जन्म धर्म पत्नी जगमलदे की कोख से हुआ जिसकी वंशावली इस तरह से है : -

24.सातुजी 
  1. नामट जी
  2. अरनाल(अणदराय)
  3. ददेपाल(नूत)
  4. महपाल(नूत)
  5. मालाजी(देवपुरूष)
  6. ईंदा बाई(कुण्डा बाई)
        दिन प्रतिदिन की प्रसिद्धि से पुरोहितों को सत्तू जी महाराज के प्रति जलन होने लगी तथा उन्होंने एक दिन सातूजी को अपने घर पर बुलाकर चूरमा की रसोई दी तथा उसमें विष मिला दिया जिससे सातूजी वीर योद्धा के प्राण पखेरू उड़ गए ।इस बात की सूचना चारों तरफ आग की तरह फैल गई जिस पर उनकी धर्म पत्नी जगमाल दे डाकलनी को भी पता चल गया कि सातूजी नहीं रहे इस पर जगमलदे ने जस्सा खेड़ा में अजमेर की तरफ जाने वाले रास्ते पर आ गई यहां जस्सा खेड़ा(जस्सा खेड़ा, तहसील भीम, जिला राजसमंद में ही उनको शक्ति का रूप चढ़ आया उधर सातूजी वीर योद्धा को वीरगति प्राप्त होने पर उनका घोड़ा उनकी पगड़ी लेकर जस्सा खेड़ा की तरफ ही आ गया। जस्सा खेड़ा से आगे निकलते अतरिया (डर )जहां जगमल ( डर) गई उस स्थान को आंतरिया ही नाम दिया गया है। सामने से घोड़े को पगड़ी लेकर आते देखकर जगमलदे को पुनः और शक्ति स्वरूपा शक्ति की प्रकृति सूर्यदेव से और मिल गई तथा उन्होंने सूर्य भगवान को याद करते हुए अपने पति को गोद में लेकर सदा - सदा के लिए प्रकृति में विलीन हो गई।
मालाजी महाराज का जीवन परिचय इस तरह रहा।

नोट = परम सम्माननीय मित्रों, विद्वानों,पाठको आपके पास इससे अधिक जानकारी हो तो हमारे तक पहुंचाने की कोशिश करें जिससे मीणा ग्रंथ में इसको अच्छी तरह से प्रकाशित किया जा सके।

निवेदक:-

लेखक एवं इतिहासकार तारा चंद मीणा ( चीता ) कंचनपुर सीकर

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