LOK Devta : Saint Shri MalDev Ji, Magatji, Malkanwarji Maharaj : Cheptar - 4
लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!
एक ऐसी दुनिया में कदम रखें जहां शब्द जीवंत हों, विचार फले-फूले और कहानियां सामने आएं। यह एक ऐसी जगह है जहां जुनून साझा किया जाता है, ज्ञान का आदान-प्रदान किया जाता है और कनेक्शन बनाए जाते हैं। चाहे आप एक अनुभवी पाठक हों या जिज्ञासु घुमक्कड़, यह ब्लॉग आपकी कल्पना को प्रेरित करने, सूचित करने और प्रज्वलित करने के लिए है।
विचार के क्षेत्र के माध्यम से एक यात्रा पर मेरे साथ जुड़ें, क्योंकि हम यात्रा और रोमांच से लेकर प्रौद्योगिकी और नवाचार तक, साहित्य और कला से लेकर कल्याण और आत्म-खोज तक विविध विषयों की खोज करते हैं। यहां, आपको देखभाल के साथ बुने गए शब्दों का एक टेपेस्ट्री मिलेगा, जो अंतर्दृष्टि, दृष्टिकोण और नए विचारों की पेशकश करेगा जो आपके जीवन को समृद्ध करेगा।
एक भावुक ब्लॉगर के रूप में, मैं कहानी कहने की शक्ति में विश्वास करता हूँ। प्रत्येक पोस्ट आपको नई दुनिया में ले जाने के लिए, चिंतन को उत्तेजित करने के लिए, और सार्थक बातचीत को चिंगारी देने के लिए सावधानी से तैयार की गई है। साथ मिलकर, हम एक गहरे अनुभव की शुरुआत करेंगे, जहां आपके विचार और मत मायने रखते हैं। यह ब्लॉग आकर्षक चर्चाओं और समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के एक जीवंत समुदाय के निर्माण के लिए एक मंच है जो ज्ञान की प्यास और लिखित शब्द के लिए प्यार साझा करते हैं।
अपने शब्दों के माध्यम से, मेरा उद्देश्य आपको प्रेरित करना और सशक्त बनाना, आपकी धारणाओं को चुनौती देना और आपको जीवन की संभावनाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। चाहे आप व्यावहारिक सलाह, एक क्षणिक पलायन, या बस प्रेरणा की खुराक की तलाश कर रहे हों, यह ब्लॉग आपका अभयारण्य है, आपके ज्ञान और रचनात्मकता का नखलिस्तान है।
तो, अपने पसंदीदा पेय का
एक कप लें, एक आरामदायक नुक्कड़ पर बैठें, और
उन अजूबों में गोता लगाएँ जो हमारा इंतजार कर रहे हैं। साथ में, हम
अन्वेषण, विकास और अंतहीन जिज्ञासा की अविस्मरणीय
यात्रा शुरू करेंगे। एक ऐसी दुनिया में आपका स्वागत है जहां विचार खिलते हैं और
सपने उड़ान भरते हैं। लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!
अंक 844
भाग-4 मालाजी महाराज का जीवन परिचय
इस गांव के पीछे तीन मगरे ऐसे हैं जिनका ऊपरी शीरा तीखा है। इस बीच हरिया से संबंधित परिवार यहीं रहते थे । इन पहाड़ों के बीच की जगह को मेड़ी भालियां कहते हैं तथा मेडी को शामिल करने पर मेडी भालियां ( बारह खेड़ा)कहलाती है। समय परिस्थितियों के अनुसार वीर योद्धाओं को अपनी पहचान बनाए रखना तथा पहचान को छिपाए रखने के लिए जगह बदलनी पड़ती है। उसी के तहत जब सातूजी की पत्नी जगमलदे डाकलनी गर्भ से थी तब उन्होंने अपनी बहन के घर बिहार भाण्डेता जो विलियास(जवाजा) के पास पड़ता है वहां चली जाती है।वहीं पर वीर बालक माला जी का जन्म :-बिहार-भांडेता (जवाजा ब्यावर जिला अजमेर के नजदीक) गांव में होता है। मांगटजी के जन्म के समय उनके माता-पिता बिहार में ही थे।
सातूजी के पुत्र जन्म पर काफी लोगों को बुलाया गया अच्छे भोजन की व्यवस्था की गई तथा समाज में नाम करण कराया। सातूजी अपने पुत्र मालजी के जन्म पर सातू खेड़ा गांव से बदावणी गाने के लिए बूढ़ा भाट को आमंत्रित किया । नवजात शिशु के जन्म की बदावणी गाने से बूढ़ा भाट को पछेवड़ा बंद में हीरे मोती दान में दिए।
उनको अपनी प्रकृति की शक्ति के माध्यम से पता चल गया था कि मांगटजी बहुत ही ताकतवर योद्धा बनेगा तथा सातू खेड़ा में नाम रोशन करेगा।
1.मालाजी में बचपन से ही वीरता के लक्षण:-
मालाजी बचपन से ही खेलने कूदने में रूचि रखते थे। देखने में तो वह मंदबुद्धि बालक की तरह दिखाई देते थे तथा असामान्य से बालक की तरह नजर आते थे परंतु उनके साथ खेलने वाले मित्र गण उनसे डरते थे क्योंकि वह खेल-खेल में ही उनके साथ मारपीट करने लग जाते थे जिससे उनकी मित्र मंडली उनसे डरने लग गई थी और धीरे-धीरे मांगटजी के डर से आम लोग भी घबराने लग गए थे क्योंकि उनका स्वभाव क्रोधित और गुस्सा वाला हो गया था
2.मांगटजी महाराज और देवनारायण जी समकालीन मित्र;-देवनारायणजी अपने परम मित्र से मिलने के लिए भालियां सातू खेड़ा जाने के लिए निकल पड़े। देवनारायण चलते गए तथा टॉडगढ़ के नीचे एक मकान के पास में अपने घोड़े को रोका जहां कुछ समय के लिए उन्होंने विश्राम किया जो जगह घाटी मोनिका देव के नाम से आज तक प्रसिद्ध है ।
वहां कुछ समय विश्राम करने के बाद में देवनारायण जी खेड़ा आ गए।
सातू खेड़ा पहुंचते ही रास्ते में उनको एक राहगीर मिले जो मांगटजी के घर का पता पूछा जिस पर सातूजी ने एक मकान की तरफ इशारा कर दिया कि वह सातूजी का घर है तथा यथाशीघ्र अपने सिर पर रखी हुई लकड़ी की पोटली को एक तरफ उतारकर उनके सामने आकर खड़े हो गए कि मैं ही सातू जी हूं ।
आपको क्या काम है देवनारायण जी ने अपने आपको साडू जी का पुत्र बताते हुए अपना नाम बताया तथा सातूजी की घरवाली जगमलदे को अपनी मौसी बताया इस तरह से सातूजी से जानकारी करने के उपरांत उनके पुत्र मालाजी से मिलने के लिए उत्साहित हुए जिस पर मालाजी गांव की चौपाल में खेलने के उपरांत घर की तरफ आ रहे थे उनको आते ही सातूजी ने देवनारायण जी का परिचय करा दिया तथा दोनों की मित्रता हो गई इस प्रकार दोनों आपस में एक दूसरे के मित्र बनकर साथ में रहने लगे।
अंक जारी रहेगा..............
अरजंवत
लेखक एवं इतिहासकार तारा चंद मीणा (चीता)
कंचनपुर सीकर
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