LOK Devta : Saint Shri MalDev Ji, Magatji, Malkanwarji Maharaj : Cheptar - 6
लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!
एक ऐसी दुनिया में कदम रखें जहां शब्द जीवंत हों, विचार फले-फूले और कहानियां सामने आएं। यह एक ऐसी जगह है जहां जुनून साझा किया जाता है, ज्ञान का आदान-प्रदान किया जाता है और कनेक्शन बनाए जाते हैं। चाहे आप एक अनुभवी पाठक हों या जिज्ञासु घुमक्कड़, यह ब्लॉग आपकी कल्पना को प्रेरित करने, सूचित करने और प्रज्वलित करने के लिए है।
विचार के क्षेत्र के माध्यम से एक यात्रा पर मेरे साथ जुड़ें, क्योंकि हम यात्रा और रोमांच से लेकर प्रौद्योगिकी और नवाचार तक, साहित्य और कला से लेकर कल्याण और आत्म-खोज तक विविध विषयों की खोज करते हैं। यहां, आपको देखभाल के साथ बुने गए शब्दों का एक टेपेस्ट्री मिलेगा, जो अंतर्दृष्टि, दृष्टिकोण और नए विचारों की पेशकश करेगा जो आपके जीवन को समृद्ध करेगा।
एक भावुक ब्लॉगर के रूप में, मैं कहानी कहने की शक्ति में विश्वास करता हूँ। प्रत्येक पोस्ट आपको नई दुनिया में ले जाने के लिए, चिंतन को उत्तेजित करने के लिए, और सार्थक बातचीत को चिंगारी देने के लिए सावधानी से तैयार की गई है। साथ मिलकर, हम एक गहरे अनुभव की शुरुआत करेंगे, जहां आपके विचार और मत मायने रखते हैं। यह ब्लॉग आकर्षक चर्चाओं और समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के एक जीवंत समुदाय के निर्माण के लिए एक मंच है जो ज्ञान की प्यास और लिखित शब्द के लिए प्यार साझा करते हैं।
अपने शब्दों के माध्यम से, मेरा उद्देश्य आपको प्रेरित करना और सशक्त बनाना, आपकी धारणाओं को चुनौती देना और आपको जीवन की संभावनाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। चाहे आप व्यावहारिक सलाह, एक क्षणिक पलायन, या बस प्रेरणा की खुराक की तलाश कर रहे हों, यह ब्लॉग आपका अभयारण्य है, आपके ज्ञान और रचनात्मकता का नखलिस्तान है।
तो, अपने पसंदीदा पेय का एक कप लें, एक आरामदायक नुक्कड़ पर बैठें, और उन अजूबों में गोता लगाएँ जो हमारा इंतजार कर रहे हैं। साथ में, हम अन्वेषण, विकास और अंतहीन जिज्ञासा की अविस्मरणीय यात्रा शुरू करेंगे। एक ऐसी दुनिया में आपका स्वागत है जहां विचार खिलते हैं और सपने उड़ान भरते हैं। लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!
अंक - 846
भाग - 6 वीर मांगटजी की शादी सिंहदे भटियाणी के साथ
मांगटजी की वीरता की प्रशंसा चारों तरफ फैलती जा रही थी। इसी दरमियान जैसलमेर के महाराजा चंद्रवंशी भाटी रसालू कंवर की राजकुमारी शिंगदे शादी योग्य हो चुकी थी इधर मांगटजी की प्रसिद्धि बढ़ने से उनकी भी चारों तरफ चर्चा हो रही थी। मांगटजी को रोही पर्वत पर बने किले को जोधपुर महाराजा ने पहले से ही बामनहेड़ा के ब्राह्मणों को बक्शीश में दे रखा था। उस पर हरिया व सरिया ने अधिकार कर लिया था। जिस पर मांगटजी ने अपना अधिकार जमा लिया था तथा देवनारायण जी ने माला जी को मुकुट पहना कर उस क्षेत्र का राजा घोषित कर दिया। मांगटजी को इस धरती का धणी व भौमकारा राजा घोषित किया गया तथा मुकुट धारण कर हरिया व सरिया वंशज मोटिस कहलाए तथा इनके वंशज पंवार, धोधिंग(प्रथम), बोया(द्वितीय), देहलात(तृतीय) के बाद मोठीस, (मोठी) मोटिस चतुर्थ स्थान पर आता है।
जहां पहले कौन(टीका या प्याला व प्रसाद मिलता हो) इनका स्थान निर्धारित है।भायली क्षेत्र में जहां (प्याला, प्रसाद,टीका करने का स्थान) मोठीसों से पहले यदि पुजारी हो तो प्रथम स्थान है। उसके बाद ही मोठीस (मोटिस) अपना स्थान लेते हैं । मांगटजी के पुजारियों को प्रथम माना है। राजकुमारी सिंगदे भटियाणी प्रकृति की परम भक्त थी वह प्रतिदिन सूर्य भगवान की उपासना करती थी जिससे उनके शरीर में ऐसी शक्तियां प्राप्त होने से उनके सामने कोई खडा ही नहीं हो पाता था तथा वे धीरे-धीरे परिवार के सदस्यों से अलग विचार रखने लग गई थी इस पर महाराजा ने पुत्री को शादी योग्य जान कर वर की तलाश करना शुरु किया तथा शादी की चिंता सताने लगी ।
राजा को राजकुमारी योग्य वर के लिए चिंता होने लगी इस पर महाराजा ने राजकुमारी के स्वयंवर हेतु एक नई शर्त रख दी जिससे आम राजकुमार उसको हल नहीं कर सके। महाराजा ने अपने महल के कंगूरे पर तोरण के साथ एक चिड़िया बनाई तथा उस तोरण को महलों की सबसे ऊंचे कंगूरे पर रखवा दिया। तोरण इतनी ऊंचाई पर था कि वहां पर पहुंचना बड़ा ही कठिन काम था। राजा की शर्त के अनुसार इस तोरण को राजकुमारी के योग्य जो वर होगा उसको यहां तक पहुंच कर तोरण वंदावणी करनी होगी। आसपास के सभी राजा महाराजाओं को इसके बारे में अवगत कराया गया और स्वयंवर की सूचना पहुंचाई गई। यह सूचना माला जी महाराज तक भी पहुंची। कई राजकुमार, राजा व महाराजा स्वयंवर में भाग लेने आए उसी में मांगटजी भी पहुंचे।
माला जी का स्वयंवर आषाढ़ शुक्ला नवमी विक्रम संवत 991 सन् 934 को सम्पन्न हुआ। इस दिन सभी राजा महाराजा अपने - अपने प्रयास के लिए उचित स्थान पर पहुंच चुके थे तथा स्वयंवर में भाग लेकर अपना - अपना भाग्य आजमा रहे थे परंतु तोरण वंदावणी तक कोई भी नहीं पहुंच पा रहा था। जैसलमेर महाराजा को इस बात की काफी चिंता हुई तथा सोचने लगे कि मैंने यह बहुत बड़ी चुनौती राजकुमारों के सामने रख दी है इसके लिए मुझे शर्मसार होना पड़ेगा कि कोई भी राजकुमार इस स्वयंवर को जीत नहीं पा रहा है परंतु वहां विराजमान मत्स्य महाराजा (अलवर)यह सब कुछ देख रहे थे तथा जैसलमेर महाराजा को कहा कि आपको चिंता करने की कोई बात नहीं है इस स्वयंबर को जीतने वाला योद्धा भी अपने पास यहां पांडाल में विराजमान है जो इस स्वयंबर को जीत सकेगा इस पर महाराज ने कहा कि उस शख्सियत को आगे लाओ अन्यथा मैं काफी परेशान हो रहा हूं इस पर माला जी को यह शक्ति प्रदर्शन करने का मौका दिया जिस पर ईश्वरीय शक्ति के साथ-साथ सूर्य भगवान की आराधना करने वाली राजकुमारी को भी सुयोग्य वर की तलाश थी। इसलिए शक्ति स्वरूपा मां के आशीर्वाद से माला जी ने घोड़े को ऊंचाई पर छलांग लगाने के लिए अपने पैर से एडर मारा घोड़ा हवा की गति से तोरण तक जा पहुंचा तथा तोरण के खटका लगाया जिसमें चिड़िया के साथ महल के तीन कंगूरे भी टूट गए इस दृश्य को देखकर चारों तरफ बैठे हुए सभी लोगों ने अपने दांतो के तले अंगुली दबाई व आश्चर्यचकित रह गए। राजकुमारी सिंगदे भटियाणी बहुत ही खुश हुई कि उसको योग्य राजकुमार मिल गया तुरंत राजकुमारी राज्य की परंपरा के अनुसार आगे बढ़कर माला जी वीर योद्धा के गले में पुष्पमाला डाल कर अपना वर चुन लिया। सभी तरफ खुशी का माहौल हो जाता है तथा चारों तरफ तालियों की गड़गड़ाहट और पुष्प वर्षा होना शुरू हो जाती है। इस तरह वीर योद्धा माला जी और सिंगदे भटियाणी परिणय सूत्र में बंध जाते हैं।
निवेदक।
लेखक एवं इतिहासकार
तारा चंद मीणा (चीता)
कंचनपुर सीकर
Comments
Post a Comment
Thanks for contacting