LOK Devta : Saint Shri MalDev Ji, Magatji, Malkanwarji Maharaj : Cheptar - 1


लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!

 

एक ऐसी दुनिया में कदम रखें जहां शब्द जीवंत होंविचार फले-फूले और कहानियां सामने आएं। यह एक ऐसी जगह है जहां जुनून साझा किया जाता हैज्ञान का आदान-प्रदान किया जाता है और कनेक्शन बनाए जाते हैं। चाहे आप एक अनुभवी पाठक हों या जिज्ञासु घुमक्कड़यह ब्लॉग आपकी कल्पना को प्रेरित करनेसूचित करने और प्रज्वलित करने के लिए है। 

विचार के क्षेत्र के माध्यम से एक यात्रा पर मेरे साथ जुड़ेंक्योंकि हम यात्रा और रोमांच से लेकर प्रौद्योगिकी और नवाचार तकसाहित्य और कला से लेकर कल्याण और आत्म-खोज तक विविध विषयों की खोज करते हैं। यहांआपको देखभाल के साथ बुने गए शब्दों का एक टेपेस्ट्री मिलेगाजो अंतर्दृष्टिदृष्टिकोण और नए विचारों की पेशकश करेगा जो आपके जीवन को समृद्ध करेगा। 

एक भावुक ब्लॉगर के रूप मेंमैं कहानी कहने की शक्ति में विश्वास करता हूँ। प्रत्येक पोस्ट आपको नई दुनिया में ले जाने के लिएचिंतन को उत्तेजित करने के लिएऔर सार्थक बातचीत को चिंगारी देने के लिए सावधानी से तैयार की गई है। साथ मिलकरहम एक गहरे अनुभव की शुरुआत करेंगेजहां आपके विचार और मत मायने रखते हैं। यह ब्लॉग आकर्षक चर्चाओं और समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के एक जीवंत समुदाय के निर्माण के लिए एक मंच है जो ज्ञान की प्यास और लिखित शब्द के लिए प्यार साझा करते हैं। 

अपने शब्दों के माध्यम सेमेरा उद्देश्य आपको प्रेरित करना और सशक्त बनानाआपकी धारणाओं को चुनौती देना और आपको जीवन की संभावनाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। चाहे आप व्यावहारिक सलाहएक क्षणिक पलायनया बस प्रेरणा की खुराक की तलाश कर रहे होंयह ब्लॉग आपका अभयारण्य हैआपके ज्ञान और रचनात्मकता का नखलिस्तान है। 

तोअपने पसंदीदा पेय का एक कप लेंएक आरामदायक नुक्कड़ पर बैठेंऔर उन अजूबों में गोता लगाएँ जो हमारा इंतजार कर रहे हैं। साथ मेंहम अन्वेषणविकास और अंतहीन जिज्ञासा की अविस्मरणीय यात्रा शुरू करेंगे। एक ऐसी दुनिया में आपका स्वागत है जहां विचार खिलते हैं और सपने उड़ान भरते हैं। लेखक ताराचन्द चीता के ब्लोग में आपका स्वागत है!


अंक 841

महान् संत श्री माल देव जी (मागटजी,मालकंवरजी) महाराज ।

खेराड़, मेवाड़, मारवाड़ ,आडावल, मगरा और हाड़ोती पर आज से लगभग 1110 वर्ष पहले एक महान वीर योद्धा महापुरुष का जन्म पंवार वंश के ठिकाना भाण्डेता जवाजा तालाब के दक्षिण में पहाड़ी पर वीर पुरुष श्री सातुजी  के अंश से श्रावण सुदी 13  रविवार विक्रम संवत 969 सन् 912 में हुआ। जिनका वंश  वृक्ष इस प्रकार है।


पंवार वंशावली:-

संम्वत 2 वर्ष 51चेत्र महीना रविवार। (विक्रम संवत 251)

जिण दिन शीश समापिया, धारा नाथ पंवार।। धारानाथ पंवार (धारा नगरी)

मालवा में उज्जैन मध्य प्रदेश  पंवार वंश का संस्थापक पुरुष:-

1 . धारानाथ पंवार(धारानगरी) 2 . प्रेम पंवार (प्रेमसेण) 3 . गंधर्व सेण 4 .तामासैण ( तामावती नगरी बसाई) 5 .चन्द्र सैण 6 .भोज राज(राजा भोज) 7 .ददेपाल

8.उग्रसेण 9.भरत पंवार ( राजा भरथरी, बाई मेणादे, भाणेज गोपी चंद ) 10. उदयादीत पंवार:-

1.जगदेव 2.रणधवल 3.लालसिंह

11.जगदेव पंवार:-  1. सारण राय, (सिंदन राय)  2. अणद राय, 3. काचर गुण राय, 4. सदा बडद राय

 नोट:-वंश आगे सारण राय से  

 12.सारणराय 1. उदयगण  2. बरस पंवार 3. बाघ पंवार 4. मंज पंवार

     (पंवार वंश की 35  शाखा  में से एक शाखा का नाम)

5. होम रख 6. धूम रख 7. डाब रख 

13.डाब रख 

14.सतन रख:- 1.मोटा 2.रोहितसा पंवार

15.रोहितसा पंवार

रोहितसा  पंवार बचपन से ही प्रकृति मय भावना के बालक थे तथा शुरू से ही अच्छे व्यक्तित्व के धनी व्यक्तियों के पास रहे जिससे सूर्य भगवान की कृपा से रोहितसा ने सदमार्ग को चुना  व भगवान महावीर की तरह ज्ञान की लालशा में अपने राज्य धारानगरी से पश्चिम की ओर मेरवाड़ा की दिशा में ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने कदम बढाए तथा आज के राजस्थान की हृदय स्थली कहे जाने वाले अजमेर के समीप रावली टाटगढ़ अभयारण्य के अरावली पर्वतमाला की रोही नामक पहाड़ी पर आकर अपना आश्रम बनाया तथा ज्ञान पुंज के लिए अखण्ड सूर्य भगवान की तपस्या के लिए इस भंयकर  जंगल में रहकर 12 वर्ष तक रोही पहाड़  पर सूर्य देव की उपासना की जो यह पहाड़ अरावली पर्वतमाला व आबू पर्वत की श्रंखला के अनुरूप साक्षात  प्रकृति से भरपूर था।  यहां  मगरा क्षेत्र में सूर्य की उपासना करते हुए  प्रकृति मय हो गए। जब रोहितसा सूर्य की उपासना करते हुए प्रकृति में विहीन अखंड ज्योत फैलाए हुए पहाड़ पर अग्नि तपस्या कर रहे थे ।उन्हीं दिनों में वहां से एक सौलंकी लक्खी नाम का बंजारा व्यापार के लिए अपनी बालद लेकर सिंध प्रदेश से मालवा की ओर अपना बिणज करता था। जिस रास्ते से उसकी बालद निकलती थी उस पर रोही पर्वतमाला की तलहटी में गांव बणजारी पड़ता था । यहां लक्खी बणजारे की भेंट गांव के कुछ कामदारों से होती है।जहां अद्भुत घटना से उनका परिचय होता है।

प्रस्तुतकर्ता

लेखक एवं इतिहासकार तारा चंद मीणा (चीता) कंचनपुर सीकर     

Comments

  1. जय मांगट देव

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  2. वीर योद्धा मालदेवजी महाराज मारवाड़ के सिरोही जिले के रोवाड़ा गांव के निवासी थे। जिनका आज भी थड़ा बना हुआ है ।

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